बचपन
आज फिर याद आ गई वह आम की छांव बचपन का गांव।
तितलियों के पीछे बेपरवाही से भागना, बिना बात के खुश होना।
आज फिर याद आ गई कागज की नाव वह नीम की छांव।
वह मस्तमौला मंजर जो फिसल गया मुट्ठी से,मन को कचोटता है।
अब कोयल की नकल हम नहीं उतारते हैंजीवन में मिठास अब बची ही कहां है।
आज फिर याद आ गई तारों की छांव और दादी की कहानियां।
आंखों की पोरे कुछ गीली हो गई, जो बीत गया वह अनमोल था।
आज फिर याद आ गई वह जिद्दी सी लड़की जो गुम हो गई।