खाकी का दर्द
‘मैं शपथ लेता हूं ”इस शपथ के साथ शुरू होता है एक आम आदमी से खाकी पहनने वाले का सफ़र
सपनों से भारी ज़िम्मेदारी होती है, उनके कंधो पर ।
चुनावी हवाएं जब शुरू होती है, तब सुर्खियों में केवल हर सूबे की राजनीति गूँजती है । अख़बार के पन्नें हो या फिर टीवी पर दौड़ती भागती ख़बरें हों, जो एक दूसरे को धकेल कर पहले आना चाहती हो पर, जब भी आप इन पर नजर डालेंगे तो कहीं न कहीं एक ख़बर ज़रूर टकरा जाएँगी आपकी आँखों से कि फलां जगह पर पुलिस की मौत और कुछ देर बाद मुआवजे की घोषणा ।
कौन मारा गया, किस जाति का था, कहाँ से था ??
बात इस बात पर नहीं होगी बल्कि बात सपाट होगी कि खाकी के खून का कोई रंग नहीं??
जिनका कर्तव्य है सुरक्षा देना वो कितने सुरक्षित है जनाब।
उनकी जान की ज़िम्मेदारी किसकी है ?
उनकी जिंदगी इतनी सस्ती कैसे हो सकती है। सच बात ये है कि मुफ़्त में नही मिलती है ये वर्दी।
इस वर्दी को जो भी पहनता है उसे अपने जीवन की सारी खुशियों की कुर्बानी देनी पड़ती है ।
इस वर्दी को पहनने वाले देश के नौजवान चाहे वो लड़की हो या लड़का जब ये वर्दी पहनता है तो वो लड़की लड़के के फ़र्क से परे एक सैनिक बन जाते हैं ।
हमारे देश के सैनिक वर्दी को पहनकर देश की सीमा पर मुस्तैदी से तैनात हैं, तो कहीं पहरा दे रहे है ।
तो कोई वर्दीधारी किसी अपराधी से हमारी रक्षा कर रहे हैं ।
हम अपने हर त्यौहार को खुशी और धूमधाम से मनाते हैं, वो चाहे होली हो या दीवाली हो, दशहरा हो, या फिर ईद और बकरीद हो, हम अपनी हर खुशी को मिल जुलकर मानते हैं।
क्या हमने कभी सोचा हम ऐसा क्यों कर पाते हैं ?
ऐसा इसलिए है कि कोई है जो अपनी खुशियों की कुर्बानी देता है कि हम सब ख़ुश रहें, हमने शायद ये कभी नही सोचा होगा कि उन वर्दीधारियों के लिए तो कोई त्यौहार नही है ।
ना उनका रंगों से कोई रिश्ता होता है और ना दीवाली के दिये, पटाखे और मिठाइयों से ।
वो अपना सिर्फ़ एक फ़र्ज़ मानते हैं वो है लोगों की सुरक्षा ।
वे देश की सुरक्षा के लिए अपनी सारी खुशियाँ कुर्बान कर देते हैं।
क्या हमने कभी सोचा कि क्या वर्दी वाले का घर परिवार नही होता या उनको दिल नही करता कि वे भी अपने परिवार के साथ में त्यौहार मनाये ।
लेकिन वे अपने फ़र्ज़ को पूरा करते हैं जो उनका अपने देश के प्रति अपने लोगों के लिए
क्या हमारा हमारे देश के प्रति कोई फ़र्ज़ नही बनता है ?
लेकिन आज के समय मे कहीं दंगे कहीं लूटपाट, कहीं चोरी, तो कहीं कुछ और …
कहीं नेता अपनी जेब भरने में लगे हैं तो कहीं कोई नेता किसी नेता को भड़काने में लगा है और लड़ाइयां करवा रहा है।
हमारे देश की स्थिति इतनी नाज़ुक होती जा रही है कि
अगर नही सम्भली तो आरोप सीधे वर्दी वालों पर… सबसे पहले तो हमारे देश की व्यवस्था को सुधारने की ज़रूरत है।
इसकी कानून व्यवस्था में भी सुधार होने चाहिये।
देश में बढ़ रहे अपराधों पर रोक लगाने की ज़रूरत है।
शर्म आती ये सोचकर कि हमारे देश की कानून व्यवस्था को क्या हो गया है, न कोई रोक लग रही है और हमारे देश की सरकार क्या कर रही है वो बस एक दूसरे पर उंगलियां उठा रही है एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगा रही है।
कोई किसी कि टांग खीचने में लगा है तो कोई किसी कि कमर तोड़ने में ।
बस बहुत हो गया है ये सब अब इसमें ठहराव आना चाहिए।
सबको मिलकर सोचना चाहिए और अगर नही सोच सकते हैं तो कम से कम उनके बारे में ग़लत या अपशब्द भी ना बोलिए……
कैसे लड़ेंगे हम अपने देश की चरमराती कानून व्यवस्था से, दिन प्रतिदिन बढ़ रहे अपराधों से
इन सरकारी दांव पेचों से जो एक दूसरे के पैरो को काटने में लगी है।
सुलगते हुए इन सवालों का जवाब किसके पास है…..?
Vibha Pathak
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