Description
Based on a True Story
लेकिन वह अभी भी टीकी हुई थी इस संसारिक युद्ध को लड़ने में अपने डेढ पैरों के सहारे । देने पटखनी उन सभी को जो उसे उसके रास्ते में अड़ंगा लगाते हुए जान पड़ते थे । वो लिए हुए थी एक बड़ा सा सिर, जिसके अंदर समया हुआ था एक दिमाग । जिसकी गणनाऐं करने की क्षमता गलत गणनाऐं करने में थी माहिर और सिर था सहारे उन डेढ पैरों के जो कुछ साल पहले पूरे दो हुआ करते थे । वो पैर जो ना जाने कितना सफर तय कर चुके थे । वो पैर जो ना जाने उसे किन-किन सड़को, गलियों, चौराहों से होते हुए उसे जिंदगी में क्या-क्या दिखा चुके थे ? वो पैर जिसके दम पर वह पहली बार निकली थी अपने घर से सामना करने इस दुनिया का जो भरी पडी है कमीनों से, भेड़ीयों से जो ढूंढते हैं शिकार और फिर शिकार का शिकार करके उसे या देते हैं मार या कर देते हैं अपने जैसा तैयार, फिर चाहे वो मर्द हो या औरत । अब शिकारी डेढ पैरों से अपने शिकार को
ढूंढता फिर रहा है और वो चला है उनका शिकार करने जो ढाल पहने हुए हैं उस अनुभव की जिसको पाया है उन्होंने एक कीमत को चुकाकर और वो कीमत है “ वक्त ”
About Author
अमृतसर, पंजाब में जन्में और वही पर पले-बढ़े रमन शर्मा वैसे कहने को तो पत्रकारिता में ग्रैजुऐट हैं । लेकिन मीडिया और पत्रकारों से इन्हें एक अजीब सी चिढ़ है । इसलिए पत्रकार ना बनकर इन्होंने अपने लिए डेव्लपमेंट सैक्टर की राह को चुना और पिछले छ: सालों से भी अधिक समय से अलग-अलग एनजीओ के साथ काम कर चुके हैं । अलग-अलग शहरों और गावों को घूमने का शौंक रखते हैं और पिछले काफी समय से पंजाब के शहरों, देहातों, कस्बों और बहुत सारे गांवो का भ्रमण कर चुके हैं । इन्हीं शहरों और गावों की जिंदगी की अनदेखी सच्चाई को अपनी किताब में भी इन्होंने ने उतारा है । यह इनकी पहली पुस्तक है और संभवत इसके बाद और भी किताबे आएंगी ।
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