Description
पंख कागज के by Bimal Baduni
कुछ आसपास घटने वाला , कुछ यादों के समन्दर से निकला , कुछ सुनी दूसरों की, कुछ कही खुद की | कुछ जो कहा नहीं , कुछ जो सुना नहीं | कुछ सूरज के साथ, कुछ चाँद के नाम | थोड़ी हकीकत ज़मीनी ,थोड़े पैगाम ख़याली | कुछ मुस्कराहटों तो कुछ आंसुओं के नाम | कुछ नदी के साथ और कुछ सागर के पास | कुछ रातें लम्बी ,कुछ सर्द सुबहों के नाम | कुछ बादलों को मनाना और फिर भीग जाना | कभी सफ़र चाहत का, कभी मन आहत सा | कभी दिल सिकंदर, कभी भय का बवंडर | इतना सब समेटे हुए है बिमल वरन बडूनी का नया कविता संग्रह “पंख कागज के” | यह एक ओर बयां करता है खुले आसमान को छूने की चाहत तो दूसरी ओर समेटे हुए है दर्द अनगिनत कैदों को झेलते हुए इंसान का | यह कविता संग्रह सफरनामा है चाहतों के आसमान से हकीकत की जमीन तक का और ये सफर सिर्फ कवि का ही नहीं , हर पाठक को कहीं न कहीं ये सफर अपना सा लगने लगता है |
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