Description
यादों को बंद डब्बों में रखना अच्छा लगता है,
कभी-कभी खट्टी मीठी गोली सा चखना अच्छा लगता है!
किसी उदास शाम में, किसी पुराने मकान में,
ये यादों का पिटारा खोल कर हँसना अच्छा लगता है!
जिन रिश्तों की डोर वक़्त ने ढीली कर दी,
उन्हें यक़ीन का सहारा देकर, कसना अच्छा लगता है!
यूँ तो पल-पल इम्तेहान लेती है ज़िंदगी,
कभी-कभी इसको भी चुनौती देकर, परखना अच्छा लगता है!
लेखक के बारे में
मेरा जन्म हिमाचल प्रदेश में हुआ और प्रारंभिक शिक्षा कसौली व शिमला शहर से हुई है ! मैं वर्तमान में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली से पी. एच. डी. कर रही हूँ ! सदैव से ही मेरी रूचि संगीत, कला एवं लेखन में रही है जिसके परिणाम स्वरुप आज मैं अपने शब्दों को किताब का रूप दे पाई हूँ !
इस काव्य संग्रह की प्रत्येक रचना मानव भाव और सामाजिक पहलुओं की अभिव्यक्ति है ! पाठकों को मेरी कविताओं में आस-पास के लोगो की सोच, रहन सहन, प्रतिक्रियाओं की छाप मिलेगी और वे उनमें स्वयं का प्रतिबिम्ब देख पाएंगे !
यह पुस्तक मैं अपने समस्त परिवार को समर्पित करती हूँ ! मेरे पिता जी और मेरे भाई का धैर्यपूर्वक मेरी कविताओं को सुनना व सराहना मुझे सदा ही अच्छा लिखने के लिए प्रेरित करता आया है ! आशा करती हूँ कि पाठकगण मेरे इस प्रयास को सराहेंगे व मुझे लेखन जारी रखने के लिए प्रोत्साहित करेंगे जिस से मैं भविष्य में बेहतर लेखक और लोकोपकारक बनने के सपने को साकार कर पाऊँगी !
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