Description
“जीवन भर तुम सत्य को तलाशते रहे
और मेरी इस अंतिम यात्रा में
खुद ही दोहराते रहे…
श्री राम नाम सत्य है।
अब रुको, इस मिट्टी को मिट्टी में मिलने की मंजिल आ गई है,
मेरे इस बोझ को ढोते, ये बदलते कंधे भी थक गए हैं।
पंडितों के मंत्र, गंगाजल का छिड़काव, ये सब ढकोसले हैं
मुझे जलाओ या फिर दफनाओ, ये तो तुम्हारे फैसले हैं
आभारी हूँ मैं तुम्हारा, मेरी इस अंतिम यात्रा में यहां तक आने का
विश्वास करो, सक्षम हूँ मैं अब आगे के सफर में अकेले जाने का।”
About The Author
दिल्ली निवास विकाश भट्टाचार्य का जन्म वाराणसी में हुआ था। वाराणसी और जमशेदपुर से पढ़ाई के समापन के उपरान्त, विकाश कई बहुराष्ट्रीय कम्पनियों में विभिन्न पदों पर कार्यरत रहे। वर्तमान समय में, विकाश लॉजिस्टिक्स से संबंधित व्यापार करते हैं। साहित्य, संगीत और चित्रकला में विकाश की रूचि बचपन से ही है। विकाश साहित्य की गद्य और पद्य दोनों विधाओं में, हिन्दी, अंग्रेजी एवं बांग्ला – तीनों भाषाओं में लिखते हैं। ‘आत्म-साक्षात्कार अभी बाकी है’ विकाश की प्रथम प्रकाशित पुस्तक है।
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