नमस्ते,
परिणाम घोषित हुआ
एक कठिन निर्णय। कल से हम आपकी प्रविष्टियों को बारीकी से समझ रहे थे। अधिकांश इतने अच्छे थे कि हमें उन्हें हटाने का कारण ढूंढना पड़ा। कुछ शब्द सीमा से अधिक थे, अच्छी तरह से स्वरूपित (formatted) नहीं थे और कुछ में कई वर्तनी(spelling) मुद्दे थे। यह एक कठिन विकल्प था लेकिन हमें तय करना था और हमने किया है। बधाई! 3 फाइनलिस्ट को!
उनकी रैंकिंग, क्रम में ।
#Yourvoice 2 तुम कहाँ जा रहे हो we at Zorba Books selected as the first entry Rajashree Pande.
We also found the following two writings quite impressive, by Archana Singh and Ritesh Mehta (सफर).
♠♣♥♦
यह स्थान उन विषयों पर आपकी आवाज़ Your Voice के लिए है जो आपके लिए मायने रखते हैं। यह आप के लिए सुनेहरा मौका है की आपकी आवाज़ सुनी जाये ।
एक आवाज को अमेजन वाउचर जितने का मौका , दो लोंगो को ज़ोरबा बुक्स के सोशल मीडिया पर फीचर होने का अवसर मिलेगा।
आप एक कविता, शायरी, गद्य के रूप में अधिकतम 50 शब्दों में लिख सकते हैं । जो दिए गए विषय पर आपकी भावना या दृष्टिकोण का सबसे अच्छा वर्णन करते हैं। नीचे टिप्पणी अनुभाग ( comments) में रचनात्मक लेखन टाइप करें और पोस्ट टिप्पणी ( comments) दबाएं।
आपके पोस्ट की हमारे विशेषज्ञ पैनल द्वारा समीक्षा की जाएगी और सर्वश्रेष्ठ को अमेज़ॅन वाउचर से सम्मानित किया जाएगा। पहले 3 विजेताओं के लिए, हम उन्हें अपने फोटो और अपने इंस्टाग्राम और फेसबुक पेज पर साझा करने के लिए एक संक्षिप्त लेखन साझा करने के लिए आमंत्रित करेंगे। यदि हमारे विशेषज्ञ पैनल द्वारा चुना जाता है, तो आपको ईमेल के माध्यम से सूचित किया जाएगा। आपकी आवाज़ जमा करने की आखिरी तारीख 19 जुलाई’ 20 है ।
चयन के लिए मानदंड
- चयन के लिए मानदंड रचनात्मक लेखन में 50 से अधिक शब्द नहीं होने चाहिए
- रचनात्मक लेखन विषय से संबंधित होना चाहिए I
- विचार स्पष्ट रूप से व्यक्त किया जाना चाहिए क्या आपका विचार अद्वितीय है? हिंदी या अंग्रेजी में लिखें विकल्प आपका होना चाहिए I
Hello, please tell me where to send the poetry?
Pl post in the comments column below
रचनात्मक लेखन
Pooja ji Lekhan 50 words thak ka likhna hai, comments box mei
उसने पूछा मुझसे कि
“मैं तुम्हारे लिए क्या हूँ?”
शब्दों की असीमित श्रृंखलाओं के बावजूद
मैं निरुत्तर थी
क्यूँकि मैं उसे इन अनगिनत शब्दों के जाल में नहीं बांधना चाहती थी
मैं उसे स्वतंत्र रखना चाहती थी
या यूँ कहें कि
मैं उसे किसी के साथ बाँटना ही नहीं चाहती थी
चाहे वो शब्द ही क्यूँ न हों
A little boy
“I know a boy
Who likes to play
And is pretty much
Found with his toy”
He goes to school
And like his friends
And bros he is very
Cool”
“He likes to read and write
Yesterday, due to a toffee
He was in a fight”
He is very cute
He likes to sing
He likes to dance
And plays a beautiful flute”
Topics kya hai plz btaye aur Hindi ki kavita bhej skte hai?
आज हमने एक बात को देखा,
लोगों ने पुलिस को भी किया सम्मानित,
ये था स्वेचछा से,
न किसी डर के नीचे।
मेरा है मानना,
जब पुलिस राजनीति से होती बाहर,
वो बन जाती ईमानदार,,
और करती देशवासियों के दिल पे राज।
सरकार दिखाएं हिम्मत,
पुलिस को बनाए स्वतंत्र,
इतिहास मे करदे परिवर्तन।
I am interested
बरसों आज मेघा तुम।
नभ घनघोर घेर लिया है,
काले काले मेघों से,
चंचल दामिनी पंख पसारे,
आने को आतुर धरा पर है,
पुलकित मन निमिष भर में,
मन के कोलाहल शांत किए है,
सदानीरा बन प्राकृति की,
अंक में आने को लालायित हुयी,
बरसों आज मेघा तुम,
नभ घनघोर घेर लिए है।
कोयल सी हूँ मैं ,मीठी सी हूँ मैं,
नादान हूँ मैं पर कमजोर नहीं
क्यों समझते हो मुझे हाथों की कठपुतली लड़की होना कोई दोष नहीं
नटखट सी हूँ मैं , बुलबुल सी हूँ मैं, न समझ बच्ची नहीं
क्यों समझते हो मुझे गुलाम ,खुल के ज़िन्दगी जीना कोई दोष नहीं
बेटी हूँ मैं , घर की इज्ज़त हूँ मैं
क्यों समझते हो मुझे दहेज़ की मशीन , बहु होना कोई दोष नहीं ।
हे परमेश्वर,एक अर्ज हमारी है,
भावो में डूबी एक पुकार हमारी है।
जगा दो पुनः सोई मानवता
यह एक करुण पुकार हमारी हैं
ला दो पुनः वो वक्त हे परमात्मा,
लिखी जहाँ नारी सम्मान की कहानी हो
हर परिवार हो ऐसा,
जहा संस्कार की नींव पुरानी हो
बुजुर्गो की जहाँ आँचल की छाव में,
जहाँ गढ़ती पीढ़ी सारी हो
विचारो की जहा अभिव्यक्ति हो,
भाव संवेदनाओ की गंगोत्री सारी हो
कर्तव्यों की जहाँ खेती हो,
प्रेम में डूबी मानवता सारी हो
त्याग हो जहा सर्वोपरि,
दुख हरने की संवेदना सारी हो।
कर्तव्यनिष्ठ हो हर जान जहाँ,
इस वसुधा में एक परिवार सी,
भूमिका सबकी बलशाली हो।
हरियाली जग में व्याप्त हो,
यही भूमिका प्यारी हो
हर मुख पे मुस्कान सजे
प्रेम से सींची हर क्यारी हो
रोग शोक की बात न हो,
मुश्किलो से टक्कर लेने की ठानी हो
हर दिल की यही कहानी हो
सुमति सबकी जुबानी हो।
आज बना दे ब्रह्मांड नया,
जहाँ आशा की नही कहानी हो
अरुणिमा का संदेश हो,
सविता के प्रकाश की कहानी हो
बस इतनी अर्ज हैं हे परमेश्वर
सद्बुद्धि से निर्मित हर प्राणी हो
हे परमेश्वर,एक अर्ज हमारी है,
भावो में डूबी एक पुकार हमारी है।
जगा दो पुनः सोई मानवता
यह एक करुण पुकार हमारी हैं
ला दो पुनः वो वक्त हे परमात्मा,
लिखी जहाँ नारी सम्मान की कहानी हो
हर परिवार हो ऐसा,
जहा संस्कार की नींव पुरानी हो
बुजुर्गो की जहाँ आँचल की छाव में,
जहाँ गढ़ती पीढ़ी सारी हो
विचारो की जहा अभिव्यक्ति हो,
भाव संवेदनाओ की गंगोत्री सारी हो
कर्तव्यों की जहाँ खेती हो,
प्रेम में डूबी मानवता सारी हो
त्याग हो जहा सर्वोपरि,
दुख हरने की संवेदना सारी हो।
कर्तव्यनिष्ठ हो हर जन जहाँ,
इस वसुधा में एक परिवार सी,
भूमिका सबकी बलशाली हो।
हरियाली जग में व्याप्त हो,
यही भूमिका प्यारी हो
हर मुख पे मुस्कान सजे
प्रेम से सींची हर क्यारी हो
रोग शोक की बात न हो,
मुश्किलो से टक्कर लेने की ठानी हो
हर दिल की यही कहानी हो
सुमति सबकी जुबानी हो।
आज बना दे ब्रह्मांड नया,
जहाँ आशा की नई कहानी हो
अरुणिमा का संदेश हो,
सविता के प्रकाश की कहानी हो
बस इतनी अर्ज हैं हे परमेश्वर
सद्बुद्धि से निर्मित हर प्राणी हो
तरुवर भी सदा समर्पित मनुज पर,
खटोला से अर्थी तक जीवन निर्भर उसकी शाख पर।
इच्छा- आकांछा स्त्री सभी समर्पित हो जाते अग्नि कुंड मे,
समर्पित हो जाता उसका जीवन,
एक पराये आंगन मे।
माता होती समर्पित,
अपने लाल की हँसी पर,
पिता हो जाता है समर्पित,
अपने लाल के सपनो पर।
समस्त सृष्टि का चक्र है,
सृजन अर्पण तरपन,
अटल अंत है बस मौत के,
आगोश मे जीवन का समर्पण।
🙏🙏
लक्ष्मी यादव
मुंबई
क्यों पलको के किनारे बैठे ,
नींदो से गुफ्तगू कर रहे हो ?
क्यों दिल के सवालो में ,
मासूम धड़कनो को उलझा रहे हो ?
तुम ही ने तोड़ा था ना इन आँखों का नींदों से रिश्ता ,
अब इन्हें सुना छोड़… ऐ ख़्वाब…. तुम कहाँ जा रहे हो ?
Mere Papa
Seedha sral vyaktitv tha jinka
Sbse pyara Dil tha unka
Mere nazdeek thay sbse jyada
PURA krtay thay har vada
Kbhi na mujhko beti mana
Hmesha apna beta Jana
Kam smay may jitna paaya
Gagar may Sagar bhar paya
Dur Sitara ban baithe jo
Dil may har pal rhtay hai wo
Baatein jinki pyari boli
Mujhko khte thay, pyar say bholi
Unki seekh kbhi na bhul Pai
Mai Apne papa ki parchaaii..
Unk aankh k hum do moti
Didi bdi aur Mai hu choti.
Poetry
Title-Humanity
Nibbed by-Shampa Saha
Words-50
Dtd-10/07/2020
Human,best creation of God
No doubt
With specific characteristics ,humanity
His special identity
That differs human from the other
But now brother kills another
Pain prevailed
God revealed
The truth of human race
No space
For brutality
They should embrace humanity
Once again
Then all pain
Will vanish again.
मुझमें रहने वाले तुम,,
मुझसे नजरें बचा रहे हो…
खुशियाँ दी थी तुम्हें, तुम आँसू दिये जा रहे हो..
मोहब्बत मोहब्बत की रट लगाये तुम ही,,
अब मोहब्बत सिखा कर तुम कहाँ जा रहे हो…।।।
-©अभ्भू भइया
Where are you Going
Where are you going?
Don’t go astray,
Success is not far away.
Go where Northwind meets the sea,
For then your heart will be free.
Where are you going?
Go towards the mountain peak,
Don’t even allow a single success stone to creak.
Feel the wind and rise in the sky,
For memories never lie.
Where are you going?
Go find a place in your own heart,
For then your journey will start.
Now years later you may feel ,
The journey is about to end,
But don’t forget, Almighty is your eternal friend.
Where do you want to go,
Okay go live your life…
Umra Atir Khan
माना तेरी कामयाबी ने तुझे अपनाया है ,
पर कई लोग है जिसने तुझे इस काबिल बनाया है
माना तेरी आँखों में हज़ारो सपने है ,
पर उन सपनो को पंख देने वाले भी तेरे अपने है
माना तेरी ज़िंदगी बहुत खूबसूरत है,
पर उस खूबसूरती में कइयों ने अपना किरदार निभाया है
इन सबके लिए जो फ़र्ज़ तुम्हे निभाना है ….
उसे छोड़े तुम कहा जा रहे हो !
Vandana topic hai ” Kahan Jaa rahe ho?” Poetry bhi submit kar sakte ho
Pl submit your write up in the comments column
कुछ कहे सुने कुछ बताए बिना यू
अकेला छोड़कर मुझे
तुम कहां जा रहे हो
मै कैसे रहूंगी तुम्हारे बिन अकेली
बच्चे किसे बाबा कहेंगे उनके सार पर
कौन हाथ रखेगा
एक पल भी ये सब सोचे बिना यू
अकेले अकेले
तुम कहां जा रहे हो
जहां से
फ़कीर बादशाह साब (FAKEERA)
पापा! आप के होने से
खुला आसमां भी छत नजर आता है
पापा! आप के होने से
हर मुश्किल का हल नजर आता है
पापा! आप के होने से
बहता दरिया भी जल नजर आता है
पापा! आप के होने से
मुझे अपना कल नजर आता है।।
#Manish Kumar Savita
हाँ छ जून ,यही वह दिन है
जब वर्षों का वह डर मौत घर आ ही गयी।
और मैं लाचार कुछ कह भी ना सकी
कि मामा…. तुम कहाँ जा रहे हो?
जीवन पर जो आपकी छाप है ना,
वह आपके राश्ते को तलाश रही है।
वक़्त की नदी के साथ ,
बहना सीखना पड़ेगा ।
जहाँ वो ले जाना चाहे ,
उस पथ का मुसाफिर ,
होना मजबूरी है हम सबकी ।
वक़्त के थपेड़ों को सहना ही होगा ,
चाहे भंवर मिले या किनारा ।
वक़्त आने पर ,
वक़्त ही साथ देगा ।
तभी शायद हो पायेगा ” दीपक ” ,
सागर से मिलन हमारा ।।
किया विकास कई तुमने,
हर वक़्त,हर चरण में,
घुमें गाडि़यों में, रखा नजर फोन पर,
सीधी निगाहें, हाथ जेब पर।
छोड़ा दामन परिवार का,
बिखेरी खुशियाँ संसार का,
महँगी जीवनशैली पर, इतरा रहे हो।
अब तुम ही बताओ मानव…
झूठी कामयाबी का ताज पहन,
तुम कहाँ जा रहे हो…?
___ Manisha Shaw
ज़ात देखकर प्यार करो, क्या ये खुदा का कोई फरमान है..
ये तो दिल मिलने की बात है जनाब, वरना यहां तो अपने भी अनजान हैं।
ऐ दुनिया वालो तुम कब समझोगे इस बात को..
के किसी की ज़ात नहीं, उसके कर्म ही उसकी पहचान है।
छोड़ इस दोगले समाज को कहीं ऐसी जगह चलते हैं..
जहाँ तू और मैं सिर्फ ओर सिर्फ इन्सान हैं।
अपनी बहन की बात आई तो ज़ात भी मिलाने लगे..
ओर दूसरो की बहन को देख तू ही कहता वो देखो क्या सामान है।
Rajesh Khandelwal aksar Apne bete Tarun Ko jivan ke nanhe nanhe pahaluo se avagat karane ke liye jute rahate the .kahate the abhi hm tumhe sikhane padane ke liye tumhare pass h bete Jo batate h unhe Apne Jehan me rakh lo jivan ke Kam aayega.nahi kya pta hm chale jaye to tumhe kaun btayega bechara Tarun 5 sal me Apne khelane khane ki Umar me tha use iska kha Gyan tha vah pita ji yah pooch maje leta ki ap kha ja rahe h. dheer 10 sal bit gya Tarun yahi kuch 10 sal ka ho gya .ek din vah Nadi ke kinare baith kuch soch rha tha ki usake pita ne use vevajah dekh dutkar pade .aur krodhit ho vha se chale gye Tarun mayush hokar baitha rha .kuch der bit gayi tabhi vha se ek bude baba Gujar rahe the .vah Tarun ko dekh uske pass aaye aur bole kya hua beta .Tarun ne Apne pita ke Kahi huyi sari bat batayi aur poocha abhi to Mai chota hu pita abhi mujhe sbkuch sikhana chahate h aur kahate h sikh lo nahi Mai chla jauga to tumhe kaun batayega yah sun baba ne use btaya ki beta tumhare pita ji chahate h ki tum unake jite ji aatmnirbhar bano taki unhe marate waqt tumhe dekhkat Khushi ki Anubhuti ho.
ज़िंदगी धुआँ-धुआँ,
न ज़मीं न आसमां।
परछाँई जैसा ही है,
ये सफ़र भी तनहा।
ज़िंदगी की दौड़ में,
साँस भी मुश्किल है।
तमन्नाओं के खेल में,
सब कुछ दाँव पे है।
लालसा का समंदर,
हमेशा खाली-खाली है।
मन अंदर से भारी है,
पर,बाहर दीवाली है।
तुम कहां जा रहे हो?
क्या अपने होने का मतलब,
समझ पा रहे हो?
रोज-रोज सिर्फ ,
सोना और जगना,
निकलते सूरज डूबती रात,
के साथ चलते रहना,
क्या अपने होने का मतलब,
सिर्फ यही पा रहे हो?
जीवन से दूर मौत से पहले
सोचो क्या दिए जा रहे हो?
कँहा जा रहे हो
बचा के सबसे नजर
अनजाना है सफर
और मुश्किल बड़ा है डगर
फिर खो जाने का भी है डर
पहले खुद को जान लो
क्या हो खुद को पहचान लो
फिर आसान हो जायेगा
ये ज़िन्दगी का रास्ता
और तुम्हें मिल जायेगा
तुम्हारी मंजिल का पता
Meri post ki hua rachna par av v awaiting moderation show kr rhi hai. Kb tk acceptance milega n how would i know?
I have submitted my poem in hindi .May I also participate in english section.. Please provide topic for english section
सफ़र ( Safar )
ना भागना है,ना रुकना है, बस चलते जाना है,
परिवर्तन का दौर है, बस उसमे ड़लते जाना है,
चुनौती ये है,की अनुभव नया है, बस धैर्य से संभलते जाना है,
कुछ पल का ही अंधेरा है, बस उम्मीद का दीपक जलाते जाना है,
थोड़ा-डर,थोड़ी-घबराहट है, बस फिर भी मुस्कुराते जाना है,
समय बदलेगा ये विश्वास है, बस उत्साह को रगो मे भरते जाना है,
जीवन एक यात्रा है…बस चलते जाना है.
Unlock Poetry_
सफ़र ( Safar )
ना भागना है,ना रुकना है, बस चलते जाना है,
परिवर्तन का दौर है, बस उसमे ड़लते जाना है,
चुनौती ये है,की अनुभव नया है, बस धैर्य से संभलते जाना है,
कुछ पल का ही अंधेरा है, बस उम्मीद का दीपक जलाते जाना है,
थोड़ा-डर,थोड़ी-घबराहट है, बस फिर भी मुस्कुराते जाना है,
समय बदलेगा ये विश्वास है, बस उत्साह को रगो मे भरते जाना है,
जीवन एक यात्रा है…बस चलते जाना है.
Unlock Poetry_ by Ritesh Mehta
The red dragon unleashing death.Crying Humanity ; is it a blunder which human made? Or nature taking revenge on us?Are we paid with our sins that nature has thrown us into ocean of dead. Be the erstwhile mother, purge our sins with your love. Take us children.
सुनो ….
वो बाद में दे देना कह कर;
जो तुम अपना दिल छोड़ गए थे,
उसे ले जाओ|
क्यूंकि चीजें उधार,
मैंअक्सर कम ही लेती हूँ|
अरे सुनो तो ….
वो अपना न सही ,
तो फिर मेरा ही ले जाओ|
क्यूंकि चीज़ें मुफ्त भी,
मैं अक्सर कम ही लेती हूँ|
Insta~ @sharanlata132
2019 की दुनिया
2019 की दुनिया मे चलते है,
वो सरफिरी दुनिया जहाँ अंधी दौड़ मे बेतहाशा भागते लोग, सोने के वक्त जागते लोग,
सड़के लोगो से भरी, घर से गायब लोग
घर तो थे पर घर मे ना रहते लोग
दादी नानी सब थे पर इनकी कहानी सुनने वाली परंपरा सब भूले लोग
एक वायरस ने दस्तक सब कुछ बदल गया, सब खोने से डरने लगे हमलोग
उपर लिखी बाते उलटी पड़ने लगी, जो घर कैद लगता घर लगने लगा, एक दूसरे से प्यार बढ़ने लगा, जिंदगी घर मे ही खेलने ,मुस्कुराने,गुनगुनाने लगी कभी ऐसा ना सुना ना देखा जो 2019 मे देखा …
तुम… कहां जा रहे हो?
पलकों को अश्कों में भिंगोए
नज़रों को नज़रों से छुपाए
जमाने को कुछ भी बिन बताएं
तुम… कहां जा रहे हो?
लबों पर ये मुस्कान लिए,
सब छोड़ दिया मेरे लिए,
दिल की बातें दिल में लिए,
तुम… कहां जा रहे हो?
असम्भव को सम्भव करके
अपनी खुशियों किसी और को देके
अपने दामन को बिल्कुल सूना करके
तुम… कहां जा रहे हो?
क्या कभी पुछा खुद से ,ठहरे खुद के पास
कभी सुना ,
क्या नही आई कोई आवाज़ कभी भीतर से
या अनसुना करके चल दिए तुम आगे !
ये कहकर कि नही ये तो संभव ही नहीं !
अरे रूक जाना था वहीं बैठ जाना था दो घङी
वही तो था “तू ” या “वो” ,
मगर ये
तुम कहाँ जा रहे हो !
– प्रीति-
“बोगनवेलिया”
वो बोगनवेलिया
गुलाबी रंग से लदा,
आज भी उसी सड़क के
चौथे मकान के पास खड़ा रहता है
सालों से!!!
अमूमन, मैं भी वहीं से गुजरता हूं
बड़े वक़्त से..
हम दोनों ने बहुत सी बारिशें
साथ ही देखी है
हां, और
भीगे भी हैं, अंदर तक..
पीछे उससे बात हुई
फिर सोचा, कि हम दोनों
अपनी
जगह बदल सकते हैं क्या..
बस
वो चल पड़े
और मैं रुक जाऊं…
वो बोगनवेलिया…. आज भी
काग़ज़-कलम-दवात, न दें मेरा साथ
कह गये, न उतारो ऐसे पन्ने पे जज़्बात
न बिकें कहीं भाव रद्दी के भावनाएँ तुम्हारी
उड़ाता फिरेगा हर शख़्स तुम्हारा मज़ाक
तुम कहाँ जा रहे हो, है राह लथपथ ख़ार से
रखते हैं कद्र तुम्हारी, मान लो हमारी बात।
राज सरगम
हुनर है जीवन जीना,
किया एक प्रयास तो नई सी हूँ मैं।
स्वप्न थे कई ,
चुनी एक राह तो नई सी हूँ मैं।
होता नही स्वार्थ स्वयं को आगे रखना ,
दिया खुद को एक अवसर तो नई सी हूँ मैं।
जीवन के संघर्षों में लीन हो जाते हैं ,
देखा शान्त होकर तो नई सी हूं मैं।
विस्मृत हो जाते हैं स्वतः ही ,
खोजा मैंने अपने आप को तो नई सी हूँ मैं।
धीवा
~कुछ तो खास है~
तेरे आंखों में कुछ तो खास है
जो तूं देखते ही मेरे
आंखों ही आंखों में
नशा सी चड जाती है ।
तेरे खुलें जुल्फों में कुछ तो खास है
जो तूं उड़ाते ही
मेरा दिल
पिघल सा जाता है ।
तेरे बातों में कुछ तो खास है
जो तूं बात करते ही
मेरी धड़कन
थम सी जाती है ।
तेरे चेहरे के हंसी में कुछ तो खास है
जो तूं मुस्कराते ही
मेरे चेहरे पे अपने आप ही
मुस्कान सी छा जाती है ।
-Diksha Meshram ✍️
…..कि मुझे चरित्रहीनता ही भाति है.
मुझे पसंद है चरित्रहीन बने रहना, कि कोई चरित्र ही नहीं है मेरा ।
मैं हवा सी आजाद हूँ, मैं नहीं मानती कोई बैगैरत कानून तेरा।
किसी घर की इज्ज़त के नाम पर,वो कई सोने की बेड़ियाँ मुझे नहीं भाति ।
वो हमेशा दमन सहने वाले संस्कारों की बातें मुझे नहीं सुहाती।
मैं तो चरित्रहीन हूँ, कि जिसका कोई चरित्र ही नहीं है।
वो हवा सी चंचल, वो नवजात सी मासूम,
कि मैं जब ठान लेती हूँ उड़ान भरने की, तो सातवां आसमान भी छू आती हूँ।
वो जब हंसती हूँ किसी बात पर , तो शर्मो लिहाज़ छोड़ कर ठाहके लगाती हूँ।
मुझे इंतज़ार नहीं उस पल का, जब वो आकर मेरा लम्हा हसीं बनाये,
मैं खुद लम्हात सजा ,उसे रोमानियत सिखाती हूँ ।
मुझे पसंद है आवारा बने रहना, कि यूँ ही अक्सर मैं अपनी मंजिलों की राहें नाप पाती हूँ ।
मुझे जिद्द नहीं किसी लड़का सा होने की..कई बार मैं कई लड़कों की भी प्रेरणा बन जाती हूँ ।
वो जो ना पसंद करते हैं चरित्रहीनता को… वो सुने,
ये वो आज़ादी है जो आपको आप बनाती है ।
जो बनाए तुमने कानून मुझे बाँधने के लिए चरित्रता के नाम पर,
मैं खुद उन सबको तोड़ अपनी चरित्रहीनता का लुफ्त उठाती हूँ।
मनीषा डिमरी
Yes ankita
Thanks, Approve ho gayi hai
Tittle.. सोशल मीडिया का जाल
कुछ ऐसी फंसी है ज़िन्दगी
सोशल मीडिया के जाल में,
कि हजारों एप्स चलाते चलाते
हम खुद को ही भूल गए.
कभी फेसबुक, कभी ट्विटर
कभी इंस्टाग्राम की याद सताएं,
इतना सब काफी नहीं था कि
टिकटोक और हेलो भी पीछे पीछे चले आएं.
सोशल मीडिया का जाल है ऐसा
जिससे बचना मुश्किल है,
जो इस जाल से निकलना चाहे
वो बेचारा इसमें और उलझता जाएँ.
समझ नहीं आता कि
क्या खोया और क्या पाया
सोशल मीडिया के इस जंजाल से,
वास्तविक ज़िन्दगी हमें भूल गई या
हमने ही वास्तविकता को भुला दिया..
हर कदम पूछ कर रखने वाला,
कहेता है मां से कि बड़ा हो गया हूं मै।
मां पूछती है, कहां जा रहे हो तुम?
टोका ना करो मैं बड़ा हो गया हूं।
कह कर ना जाने, कहां गया वो।।
✍🏻
कुछ दूर ही चला था,
कि काफ़िर नज़रों ने पूछा।
तुम कहां जा रहे हो?
मुस्करा कर कहा,
तंग हैं गलियां यहां,
सोच भी है कुंठित।
हीन हो रही मानसिकता,
मानव हो गया विक्षिप्त।
बेबस हो जीने से अच्छा,
गंतव्य हो और कहीं।
नई सोच, सफ़र नया
प्रश्न न करना फिर कभी।
—– अर्चना सिंह जया
ज़िन्दगी की जंग से घबरा कर उसने की आत्महत्या ।
पर क्या उसने सिर्फ अकेले अपने आप को मारा?
नहीं ।
उसके साथ मर गया एक पूरा परिवार । जो जीवित रहते हुए भी पल पल मरते हैं जब जब उनसे कोई सवाल करता है कि क्यों की उसने आत्महत्या?
वह निरूत्तर हो कर शून्य में ताकते हैं और खुद से ही सवाल करते हैं,,,,,क्यों की आत्महत्या?
एक खुशी पाते ही दुसरी की आशा कर रहे हो
उसके पिछे रेहकर अपनी खुशी खो रहे हो…
दुसरो को देखकर अपनी जिंदगी जी रहे हो
जो खुदके पास है उसे ही टाल रहे हो…
बेवजह पुराणी बातो से परेशान हो रहे हो
जिंदगी की सच्चाई से क्यु इतना भाग रहो हो..
केहने को तुम अपने आप को भीड मे पा रहे हो
कठीण समय पर असल मे अकेला पड रहे हो..
खुशी की तलाश मै तुम जिंदगी से खेल रहे हो
जाना तो सबको है एक दिन तो तुम कहा जा रहे हो ?
Na tere the kabhi .
Na tere kabhi ho paye.
Na jane khud bhool gaye
Ya na bhool kar bhi bhool paaye.
Wo teri yaade jo paas to mere thi.
Par teri jabaan jo thi auro ki rat lagaye.
Yu to gum sabko h ek jaisa hi
Bus ek hum hi nhi jo teri yaad me ruswa kehlaye.
Baat me hi nhi yaad me bhi nhi har shakhs
Ab to tere jaisa hai.
Bus ek hi khwahish h wo tera bhoola hua chehra kaha se laaye.
Yu kyu khwahish si apni jaga ja rahe ho
Jo ab aa hi gaye to kaha ja rahe ho.
Bhula do wo lamhe jo ajnabee kar rahe hai
Barat yaadon ki de kar kaha ja rahe ho.
Yu har pal ka tera wo intazaar karna
Aj kyu bekarari mujhko diye ja rahe ho.
Waado ka kya hai hazaro martba toot te hai.
Saaso ko apni chod k ab tum kaha ja rhe ho.
आये तो थे इस सुनहरी दुनिया में अपना जीवन लेकर।
खिलखिलाता निर्दोष बचपन लेकर।
प्रेमभरा सुंदर यौवन लेकर।
कठिनाइयां तो आती रहती हैं।
राहें हमें बनानी हैं।
तभी तो मंज़िल मिलती है।
मकड़ी को गौर से देखा है कभी?
बार बार गिरती है, ख़ुद ही संभल जाती है।
और अपना जाल बुनती रहती है।
इतनी छोटी मकड़ी से भी छोटे हो तुम?
कि थोड़ी सी कठिनाई से विचलित हो गए।
ऐसे कैसे हार मान ली तुमने?
अपने आपसे ही हार मान गए?
पता भी है कि तुम कहां जा रहे हो??
Hare krishna sir, adhero me gira ye sansar hai.ristho me padti darar hai..ab na maa ki mamta ki jarurat hai kisi ko..na pita ka vatsalye bete ke jivan ka adhaar hai…lupt ho chuki sabyata or saskrati..mil rahi hai her jagah asabhyeta ki krati..ye soch mere man pida se hai gira huya..kaise lau me wo sayut parivar ka dayera..jisme sukh hai.. or saskar pud jivan ka avtar hai….hare krishna
शीर्षक – एक गृहिणी की डायरी
शब्द संख्या-५०
जब भी चाहो पूर्ण शांति
आप वापस आ जाते हो
शराब के नशे में धुत
मेरी हर गलतीयो को
थप्पड़ से सहलाते हौ
मै खुद को फेयला देति हूं
आप थके हुए
आराम से सो जातें हौ
मैं पानी छोड़कर
अपने आँसू छिपाता हूँ
कहि तुम्हारे निद् ना
टुट जाये.
© ®शम्पा साहा.
पर. वंगाल
१३/०७/२०२०
रचनात्मक लेखन :
तुम कहां जा रहे हो?
अंजान राहों में यू तन्हा अकेले
तुम कहां जा रहे हो?
मुझे छोड़ कर मुंह मोड़ कर
तुम कहां जा रहे हो?
अकेले-अकेले!
साथ बस इतना सा था क्या हमारा?
के तुम चल दिए अकेले-अकेले!
तुम कहां जा रहे हो?
अंजान राहों में यू तन्हा अकेले!
फिर मिलेंगे
शव्द संख्या-४८
साथ चलने के खाये थे कसमें
टुट गये जो नहीं अव वशमें
जीवन भंवर मे छूट गयें हम
पयार की राहों से रूठ गये हम्
लेकिन मिलेंगे वादा हे मेरा
अन्धेरा जाकर आयेगी सबेरा
तुम काहा जा रहे हो बताते जाना
फिर उस राहो पे हमे जो है मिलना.
©®शम्पा साहा
पश्चिम बंगाल
१४/०७/२०२०
कुछ पता भी है तुम्हे
के तुम कहां जा रहे हो
किस रास्ते पर चल रहे हो
वोह रास्ता कहां जा रहा है
वोह तबाही का वोह बर्बादी का रास्ता है
ये नफ़रत बैरभाव भेदभाव का रास्ता
एकता भाईचारा अमन शांति का समाज
मानवता इंसानियत का दुश्मन है
लौट आओ
फ़कीर बादशाह साब (FAKEERA)
हमारे श्रृंगार को समझो ना हमारी कमजोरी
हमारी मर्यादा को समझो ना हमारी बेरी
हम ही वह है जो समुद्र लांघ गए हम ही वह है जो ही एवरेस्ट फतह कर गए
हम ही वह है जो आसमान को छू लिए ।
अगर हमारे त्याग की गाथा लिखो तो
तुम्हारी स्याही खत्म हो जाएगी
अगर हमारे बलिदान की कहानी पढ़ो तो
तुम्हारे पन्ने कभी खत्म ना हो पाएंगे
हम स्त्री हैं हम अपनों की खुशी और मर्यादा के लिए कुछ भी कर जाएंगे।।
अनामिका अमिताभ गौरव ✍️
आज कल रिश्ते
निभाये जातें हैं
जरूरतों से
बात दिल से नहीं
दिल रखने के लिए
करते हैं आज
कहाँ खो गए वो
जो रिश्ते दिल से
निभाया करते थे
दिल रखा नहीं करते थे
©®d.k.shukla
I write in both English and Hindi…Can I send two write ups in these two languages?And I can’t type in Hindi…So can I send photocopy of Hindi writing
अन्तिम छोर ( तुम कहा ….जा रहा हो!)
जन्मांतर का साथ,
छूटा हाथों से हाथ ।
मझधार में वादा तोड़कर,
कहा चले यूं छोड़कर ।
आमोद तितिक्ष का आलिंगन,
श्वास गतिरुध कर , क्यूं,
करते पीरा मंडन।
“तुमबिन” देह शून्यचित ,
तुम संग है अस्तित्व ।
क्यूं…
सोलह श्रृंगार करा,
मुझे..
चिरनिंद्रा में लिटा,
अग्नि में समर्पित,
कर..
तुम कहा …..जा रहे हो।
स्तुति सक्सेना सिंह।
( स्वरचित)
14/07/2020
मेरेपास छोड़ जाओ तुम
तुम्हारी वो नन्ही सिंदूर डिब्बे की कहानी ,
तुम्हारा और उनका मिलन…
मानो जैसे समस्त देवलोक में किसी उत्साह के मिलनकी कहानी,
इस रंगीन दुनिया में तुम्हारे किरदार भी कुछ इसी तरह थे..
मानो जैसे तुम धरती पुत्री सीता…
और वह राजा दशरथ के पुत्र राम…
फिर हो गया मिलन सीताराम …की कहानी,
ये वक्त थमता नहीं सखी…
छोड़ जाओ तुम अपनी वीरता की कहानी,
वह वीरता ऐसीजो अंतर्मन को…झिझोड़ के रख देती
तुम वही द्रौपदी,सीता,शती,झांसी की कहानी
कभी अग्नि परीक्षा को मारी…
तों कहीं राज-सत्तो के बीच श्यामप्यारी…
तों कभीमहिषासुर मरदानीकी कहानी…
तो कहीं देशप्रिय बलिदानी…
फिर उनके लिए थी कहानी…
असत्य पर पराजय व सत्य पर जीत लाने की कहानी…
चाहे वह रामायण की कहानी…
चाहे नरसिंह देवता की कहानी…
फिर चाहे सुभाष,आजाद,सुखदेव संग
देशवीर बलिदान की कहानी,
कुछ क्षण थाम लो सखी…
सुना दो अपनी वियोग की कहानी…
14साल वनवास की कहानी…
जैसे चाँदनी रात में चकोर संग चकोरी की कहानी,
यहाँ तुम्हारा दिया न बुझे इसकी कहानी…
वहां शरहद पर उनकी अकेलेपन व तन्हाई की कहानी,
रंगों से भरी होली में तुम्हारी श्वेत रंग की कहानी…
वहां उनकी लहू-लुहान जीवनदान की कहानी,
जिस दिन भी देश रोएगा सुनाऊंगी ये देशवीरता
व अमृत प्रेम की कहानी…,
मेरे पास छोड़ जाओ…
तुम्हारी वो नन्ही सिंदूर डिब्बे की कहानी।
_मेरी कलम ही मेरीआवाज है
Write up in both language is acceptable. Photo is not permitted
Nobody can defines her…
She is as thoughtful as a sky…
She always gives blessings
With whole heart…
If I does wrong
She makes me learn
She is my idol, my star.
She always be there,
When I need someone,
To let go of my tears
Yes she is mom…
रचनात्मक लेखन
तुम कहां जा रहे हो
खड़े हैं हर वक्त संभालने को तुम्हारे पीछे
बढ़ते हाथों को क्यों तुम ठुकरा रहे हो ?
सोची हुई मंजिल भी मिलेगी एक दिन
नाकामयाबियों पर क्यों शरमा रहे हो ?
जीने के नजरिए और भी हैं सोचो ‘सीमा ‘
एक हार से इतना क्यों घबरा रहे हो?
तुम कहां जा रहे हो
तुम कहां जा रहे हो
वहां जहां सिर्फ भ्रम है
खुले आसमान का..स्वछंद जीवन का
अपनों के बिना तुम
तुम कहां जा रहे हो
वहां जहां सिर्फ ” मैं” है
सिर्फ और सिर्फ तुम्हारा अहंकार है
जहां कोई तुम्हे ना रोके ना टोके
याद रखना नियंत्रण हो खुद पे
तभी जीवन भी तुम्हारे हिसाब से नियंत्रित होता है
तुम कहां जा रहे हो
जहां सिर्फ रुपया है..शोरगुल है
याद रखना शोरगुल तब तक है जब तक रुपया है
रुपया तब तक है जब तक शरीर काबिल है
जिस दिन शरीर नाकाबिल उस दिन ना रुपया है ना शोरगुल है
पर अपने हमेशा तुम्हारे साथ होंगे अगर तुमने साथ निभाया है
तुम कहां जा रहे हो
जहां झूठ है..झूठा प्रेम है
वो प्रेम जो सिक्कों की छनक से बढ़ता है
वो प्रेम जो प्रेम नहीं बल्कि एक छलावा है
सच्चा प्रेम तो अपनों के ही बीच है
कहीं मत जाओ
अपनों के साथ रहो
अपनों को तुम्हारी जरूरत है
उन्हें तुमसे मोहब्बत है
वरना एक दिन ऐसा आएगा
तुम चलते ही जाओगे
आगे बढ़ते ही जाओगे
पर साथ तुम्हारे कोई ना होगा
गिर गए अगर तो उठाने वाला कोई ना होगा
उठाने वाला कोई ना होगा
साथ तुम्हारे कोई ना होगा
तुम कहां जा रहे हो, तुम कहां जाना चाहते हो,
क्या है ऐसा, जो पाना चाहते हों।
हासिल करने को नाम और शोहरत,
अपनों से भी दूर हो जाना चाहते हों।
माना सपने देखना ग़लत नहीं है मगर,
ऊंचे सपनों की आंच में,झुलस जाना चाहते हो।
” अकेले रहोगे, जहाँ जा रहे हो।
भटकते वीरानों से, क्या पा रहे हो।
कुछ नहीं मिलेगा, दिमाग़ी जंगलों से,
दिल है इधर, तुम कहाँ जा रहे हो।”
(कुल 28 शब्द)
Katrana kuchh is kadar beshumar tha hmari mahobat me
Mahobat ko Dekh kar rasta badal liya krte the
Kon zalim khta h pehli nzar Ka ishaq nhi hota
Aji janab katrate katrate hum itrane par a gye
Jo rasta badal diya karte the usi raste par fir vapis a gye
लगता है कोई डॉक्टर जैसे गलती कर गया
सॉरी कहके खुद संभल गया
मैं थी, मैं हूँ ना तेरे साथ
फिर क्यू, क्यू तू शोर बेअसर कर गया
अल्फाज़ो को तीतर बितर कर गया
क्यू मुझे सदमों सा भर गया
जीते जी खुदसा कर गया
क्यू तू मर गया
क्यू?
Humko haquiqat duniya ki bata ke,
Paas aake, samjha ke or humko sata ke,
Kuch apnapan sa, is chote se dil me jaga ke,
Kaha ja rahe, tum kaha ja rahe ho?
Dabi si khwahish ko dil me jaga ke,
Ek choti si jagah,mujhme hi bana ke,
Pyaas ankho ki meri ankho me basa ke,
Chale ja rahe ,tum kaha ja rahe ho?
Na din ko sukoon,na raato ko sabar hai,
Chale hi ja rahe hai, na jaha koi ghar hai,
Bus tabahi or tanhaiyon ka manjar hai,
Tum kyu ja rahe,or tum kaha ja rahe ho?
कुछ समझ में नहीं आ रहा है
मै कहां जा रहा हूं
तुम कहां जा रहे हो
हम सब कहा जा रहे है
ख़ून के रिश्ते फीके पड़ रहे हैं
नजदीकियां खल रही है
दूरियां बड़ रही है
किसीके पास वक़्त नहीं है
सब अपनी ही धुन में मगन है
फ़कीर बादशाह साब (FAKEERA)
एक अरसा हो गया तुम्हे देखे हुए,
कहां जा रही हो ज़िन्दगी,
माना के तबाही बहोत हो चुकी,
लेकिन जो ख़्वाब जले है मेरे,
उनकी राख बटोरना अभी बाकी है।
Where are you going ?
What are you doing?
There is a putrid stench in the air
The rivers are filthy and loud speakers blare
You have defaced Mother Earth already enough
Bearing it any longer , was for her getting a bit too tough
So , now with a vengeance
She has decided to take her revenge
The deadly virus is fast tightening it’s grip
And seems to be in no mood to quit
What are you doing?
Where are you going?
It’s time for you to
apologize for your past selfish acts ,
And pledge never ever again to repeat the lapses.
Mousumi Biswas
Delhi
15 / July/ 2020
ए मेरे देश तुम कहां जा रहे हो,
तुम क्यों सियासी चालों में फंसे जा रहे हो,
तुम ना कौरवों की संपत्ति हो ना पांडवों का अधिकार,
ए मेरे देश तुम पर है हम देशवासियों का अधिकार,
कोई चक्रव्यूह में फंसा दे तुम्हें यह हमें मंजूर नहीं,
किसी अभिमन्यु की तरह अधूरी हमारी तालीम नहीं,
लहू अपना देकर बचाएंगे तुझे,
सीमा पर खड़े हैं, बनके चट्टान
तेरा बाल भी बांका होने ना देंगे।
मिथक टूटते हैं….
प्रवंचनाएं विखंडित होती हैं।
रिश्ते ढहते हैं…..
पर ना जानें किस मोह से बंधे,
हम और आप….
बडी़ शिद्दत से ….
बनाते चले जाते हैं नये आवरण और मिथक।
फिर जीते हैं नयी प्रवंचनाओं के चक्रव्यूह में…
जोडते, बुनते… गढ़ते हैं… नये रिश्ते ।
चलता है अनवरत /अंतहीन सिलसिला,
विषाद का…..
अवसाद का….
और कभी – कभी
हर्ष का
क्या यही नियति है????
डॉ. क्षिप्रा
जयपुर
तुम कहाँ जा रहे हो
पता है तुम्हें तुम कहाँ जा रहे हो ?
अनजान वह पता तुम जहाँ जा रहे हो
राह संकरी , मोड़ अंधे हैं चौराहे ,भटकाव है
लक्ष्य पर ध्यान हो बस ,तुम जहाँ जा रहे हो
सम्भल कर रखो हर कदम फूंककर
मंजिल मिलेगी तभी , तुम जहाँ जा रहे हो
माना,
. आज की सुनहरी सुबह की धूप पर करोना का काला बादल मंडराया हुआ है ,लेकिन यह स्थाई नहीं है, हमें पूरे मनोबल के साथ इससे लडना है जैसेः-संभव कै साथ असंभव ,स्मृति के साथ विस्मृति निहित है उसी प्रकार इस अस्थायी परिस्थिति मे स्थायित्व निहित है। हम तुम इससे डरकर कहाँ – पतन की ओर जा रहे हैं,जबकि हमें तो इसे पराजित कर अपने गंतब्य की ओर अग्रसर होना है अपने देश को आकाश की ऊंचाईयों तक पहुंचाकर जीवन को सार्थक बनाना है।
Tum kahan jaarahe ho,
Kabhi mudhkar Dekho toh sahi,
Andhiyari gaalio mei,
Roshni se milo toh sahi!
Dekhnna ,kahin raah thokar na khila de,
Mudhkar Dekho toh sahi,
Zindagi se milo toh sahi!
कुछ धुधंला हुआ है रास्ता, क्या अंधेरा छट रहा है?
फिर तीखी यादों की रोशनी को समेटने तुम कहाँ जा रहे हो
वीराने खंडहर में संजोया है खुद की ममता को
शोर की तन्हाइयों में गुम तुम कहाँ जा रहे हो
दिल दुखा जब, दर्द रहा तब, घाव भरे नहीं है अभी
फिर कोई हमसफ़र तलाशने तुम कहाँ जा रहे हो
आंचल में लगाए लांछन को महकता छोड़
बिखरे अस्तित्व को दफनाने तुम कहाँ जा रहे हो
उल्फत, हसरत, इबादत और नफरत की दुआ है मुस़ाफिर
जड़ों को अपनी बिसार के सुरा(मदिरा) में समाने तुम कहाँ जा रहे हो।
मेरे देश तुम कहां जा रहे हो ?
क्यों सियासी चालों में फंसे जा रहे हो ?
तुम कौरवों की संपत्ति हो ना पांडवों का अधिकार,
तुम हो हमारे सर का ताज,
अभिमन्यु सी अधूरी हमारी तालीम नहीं,
तुम्हारी छाती को छलनी कर सकें,
ऐसा किसी तरकश में बाण नहीं।
Kidhar Jana tha humko .kaha ja rhe h..
Kisi Tarah apne dil ko behla rahe h..
Hara rang kisi Ka h aur bhagwa kisika..
Ye kya hum apne bacho ko batla rahe hai..
Hami ne to kaha tha honge hmare charche jahan me..
Fir ab Ku is rusvai se sharma rahe..
Insan Apne bache ko nanhi si umar me..
Tumhe khatra insan se ye sikhla rahe h..
आज उम्र के इस पड़ाव पर, कशमकश की इस राह पर
छोड़ मुझे कहाँ जा रहे हो ऐ मन ।
कितने निर्णय लिये हम दोनों ने,आज अकेले निर्णय लिये
कहाँ जा रहे हो ऐ मन ।
धुप छाँव में संग रहे हम, छोड़ धुप में
कहाँ जा रहे हो ऐ मन ।
उलझनों को सुलझाया था हमने ,आज मुझे उलझा के
कहाँ जा रहे हैं ऐ मन ।
कितने राह में तुफा आऐ, मिल के हम दोनों टकराऐ,आज तुफान में छोड़
कहाँ जा रहे हो ऐ मन ।
कितनी हार जीत देखी थी हमनें, आज मुझे हरा के
कहाँ जा रहे हैं ऐ मन ।
सीख
कुछ बना ही लेते हैं
अपने घर में
प्राकृतिक उपवन
टहलने के लिये।
कुछ फूल कुछ पौधे
भी लगाते है
सुन्दरता की आबोहवा
पाने के लिये।
फिर देते हैं सन्देश
प्रकृति और जीवन का
मानव को मानवीयता
सिखाने के लिये।
उनका क्या जो रहते हैं
सिर्फ कच्चे मकान में
नहीं है जिनको नसीब
प्रकृति की ओट में बने
वातानुकूलित कमरे।
बने हैं बुद्धिजीवियों के सभी सन्देश
उन्हीं के लिये।
~अमन
कहाँ जा रहे हो तुम?
मैनें पूछा अपने मन से
न दिन देखा ना रात देखी
निकल जाते हो अकेले ही!
मन ने कहा, ‘मैं? अकेले? नहीं सखी!’
मैं तो तुम में हूँ!
तुम्हें छोड़ नहीं भर सकता कल्पना की उड़ान,
नहीं छू सकता नीला आसमान!
कहाँ जा रहे हो तुम?
मैंने पूछा अपने सपने से
कभी गहरी नींद में
तो कभी खुली आँखों में
चले आते हो तुम, करने मुझे बैचैन!
हंसकर कहा सपनो ने
करता हूँ इसलिए बैचैन ताकि तुम
मन के साथ भर सको कल्पना की उड़ान,
छू सको नीला आसमान!
मन में हो जब दृढ़ संकल्प
और आँखों में जब सपने
न रुकना तुम, न घबराना तुम
जब तक पूरे न होंगे सारे|
समझो ना स्वयं को कमज़ोर,
बनाओ अपनी असली पहचान!
स्त्री शक्ति को ना जाने दो व्यर्थ
तभी जानेगा विश्व इसका असली अर्थ
राजश्री पांडे
तुम कहाँ जा रहे हो?
रुको ना एक पल मेरे लिए
मुझे भी साथ लेलो ना
सब छोड़ गए मुझे बीच भंवर में
तुम मुझे भंवर से निकालोना
हर किसी ने दुखाया है दिल मेरा
तुम तो अपना प्यार निभालोना
ये बस्तियां उजाड़ते
बदहवास हुंकारते
रोंदते हसरतें
तुम कहा जा रहे हो
रक्त – रंजित देह तेरी
अब आत्मा का घर नहीं
वो भी तुझको छौड़ कर
कब की किधर गई
रुको ज़रा थमो ज़रा
रोककर खुद को अब एक प्रशन खुद से करो
तुम कहां जा रहे हो ?
कहाँ जा रहे हो
जिंदगी को छोड़कर
अपनो से मूख मोड़कर
होंगी शायद सौ वजहे मरने की
ढूंड लेते बस एक वजह जिन्दा रहने की
उतार दो ये फ़ासी का फंदा
मरना तो है आसान, पर मुश्कील रहना जिन्दा
चलो मुश्किल सफ़र चुनते हैं
अपनी कहानी फिर से बुनते हैं
तुम कहाँ जा रहे हो ?
प्रश्न देश ने किया,
हर ख़ास से था
हर आम से था
युवा जो चौराहे पर
यूं ही खड़े थे
लोग जो भ्रष्टाचार में
आकंठ गड़े थे
वो अछूते थे
जिनकी वर्दी में
जिम्मेदारी थी
उनसे कोई प्रश्न न था
जिनकी कुर्सी में
ईमानदारी थी
तुम कहाँ जा रहे हो ?
बार-बार प्रश्न कौंधता है
जिधर लोग चल पड़ेंगे
देश चल पड़ता है
तुम कहाँ जा रहे हो ?
तेरा फैसला किया खुद ही, अपना फैसला म कर न पायी,
तुझको तो वापस लौटा दिया ,खुद पलके भी न झपकायी।
काले ,धुंधले बादल आये, रात अँधेरी होने को आयी,
साया भी तेरा दूर हुआ, आँखों में बुँदे बहती आयी।
अन्तर्द्वन्द्व छिड़ा फिर मन में,मन को मै न समझ पायी।
ना होकर भी तू साथ रहा,या रही थी मेरी तन्हाई।
या रही थी मेरी तन्हाई।
तुम कहां जा रहे हो?
जब कभी मां पूछती थी तुम कहां जा रहे हो
तो लगता था क्यों पूछती है?
बहुत गुस्सा आता था, बताना भी भारी लगता था।
लेकिन आज समझ में आया और एहसास हुआ,
जब कोई नहीं पूछता कि तुम कहां जा रहे हो, तुम कहां जा रहे हो।।
हम कहां जा रहे हैं?
हम अमानवीय व्यवहार की तरफ बढ़ते जा रहे है,
इंसानियत तो जैसे खत्म सी होती जा रही है।
हर तरफ सिर्फ अपने बारे में ही सोच है,
हम कहां जा रहे हैं?
वक्त रहते अगर समझ जाए,
तो शायद जिंदगी बदल जाए।
यह संसार एक हो जाए।।
खामोश है सड़कें खौफनाक आवाजें हैं
जल रही है रोशनी पर दिल में अधिंयारें हैं
किसकी लीला है ये कौन लीला रच रहा
कौन चक्रधर है ये कौन चक्र चला रहा
उम्मीदों के दीयों को कौन है बुझा रहा
धुंधले से साए हैं कुछ साफ नजर न आ रहा
मौत के निमंत्रण पर किसका बुलावा आ रहा
न दस्तक न कोई आहट चुपचाप उसे ले जा रहा
कल किसकी बारी आए सोच मानव डर रहा
आज कुछ खबर नहीं मानव कहां है जा रहा
आज कुछ खबर नहीं मानव कहां है जा रहा है
✍️कविता_यादें (मां)
गर्म चाय में उठती भाप,
गुड़,अदरक, लौंग की महक,
खयाल मात्र से,
एक नशा सा छा जाता,
तुम्हारे रूई से मुलायम,
सफेद बादल से बाल,
पहाड़ों पर रुकी बारिश,
अलसाया सा सूरज,
कानों को चीरती हुई,
ठंडी तीखी हवा,
छाती में सांसों को,
जमा देने वाली ठंड,
खुश्की से फटे सुर्ख गाल,
पैरों में रेंगती चींटियां,
और सूजी हुई अंगुलियां,
सुबह दूध के लिए,
गाय का रंभाना, और
बरतनों की खटर पटर,
घर्र घर्र चक्की की आवाज,
कुछ खो आया था मैं!
गांव की वो सर्द सुबह,
गुनगुनाती भजन,
और घंटी की आवाज,
धुंधलाए चश्मे को साफ करतीं,
तेरी यादों का सिलसिला,
हां #मां! मेरी #प्यारी मां!
तुम हरदम मेरी सांसों में बसी हो।
मेरी सांसे, जो रह गई हैं,
गांव में, और मैं बसा हूं,
यहां इमारतों के बेजान शहर में।।
कैसा है मेरा देश,जब पूछा था किसी ने,
मैन कुछ यूं बताया उस परदेशी को,
हैं ऐसा मेरा वतन,
जहा संपूर्णता देता हर कदम,
जहा कदम उठते ही राह बना करती हैं
संस्कारो की ये भूमि हैं,
जहा हर देवशक्ति जन्म को तरसती हैं
जहा हर जीव में देव का वास है
जहा हर माँ जगतजननी हैं
हर खोज जहा पूरी है,
वही मातृभूमि मेरी है।
जिंदगी ने पूछा तुम कहां जा रहे हो। थोड़ा ठहर कर पूछो खुद से क्या चाह रहे हो। बस अंधाधुध भाग रहे हो। ढूंढोअपनी खुशी फिर जिंदगी देगी दिशा उसे पाने की, उस ओर लेके जाने की। सिर्फ बाहर की और देख रहे, हो अपने मन की आवाज को क्यों भूल रहे हो।बस पूछ रहा है यही तुम कहां जा रहे हो।।
हमारी बचपन थी रंगीन,
ये सजी थी बाग बगीचों और खेल के मैदानों से |
हम जुड़े थे पुस्तकों व अध्यापकों से,
हम देखते थे उषा की चटक लालिमा को |
पवन के झोंके व पंछियों की मधुर चहचहाहट ,
थी हमारे कानों में गुंजती |
परेशानियों से मुक्त हो, जीते थे अपना बचपन |
और तुम कहाँ जा रहे हो ?
नानी , दादी की कहानियों से दूर ,
बाग – बगीचों , खेल के मैदानों ,
पुस्तकों व अध्यापकों से दूर|
व्यर्थ अपने बचपन को झोंक दिया,
लैपटॉप और मोबाइल में |
उषा की लालिमा को छोड़ तुमने,
थाम लिया कालिमा के दामन को |
क्यों….? रुको….
उषा की उंगली थाम, निशा का साथ छोड़,
सजा लो अपनी दुनियां, महका लो अपनी बगिया |
तुम कहां जा रहे हो?
दुनिया को झुका दिया,
भारत में दम हार रहे हो?
यहाँ ना चल पा रहा मेरा कोई दांव,
बना कर रख दिया मुझे त्यौहार,
आस्था और भाईचारे की है यहाँ उंची दीवार!
जा रहा हूँ, इसलिए सर को झुका कर
ना लौटूंगा कभी, कसम यही खाकर!
सुबह निकलता नहीं ,दौड़ता हूँ ,
..और दिनभर दौड़ता ही रहता हूँ।.. मैं ही नहीं, जिस किसी को भी देखता हूँ , वो भी! मकसद एक ही.. ‘पैसा’! कभी वो सुबह होगी क्या? जहाँ सुकून की तलाश होगी।कोई पूछेगा? हर किसी से,,कि “तुम सब कहां जा रहे हो?”
What is the last date to submit
Can I write in gujrati or marathi
Please reply
कहां जा रहे हो
अपनी ही धुन में
मस्त मगन से
जिन्दगी तुम्हारी ऐसी
घड़ी की सुइयो जैसी
न खाने का होश
न सोने का ठिकाना
शिखर पर अकेले पहुंचे
रिश्ते पीछे छूट गए
एसी कामयाबी किस काम की ?
तनिक ठहर जाओ
ए दोस्त मेरे
तुम कहां जा रहे हो?
रचनात्मक लेखन
सुबह निकलता नहीं ,दौड़ता हूँ ,
..और दिनभर दौड़ता ही रहता हूँ।.. मैं ही नहीं, जिस किसी को भी देखता हूँ , वो भी! मकसद एक ही.. ‘पैसा’! कभी वो सुबह होगी क्या? जहाँ सुकून की तलाश होगी।कोई पूछेगा? हर किसी से,,कि “तुम सब कहां जा रहे हो?”
तुम कहाँ जा रहे हो ?
इससे आगे
ऐ कोरोना ……………
अब अंकुश लगा भी दो बरबादी पे
कुछ तो रहम
करो न……………..
विज्ञान, अध्यात्म जूझ रहे हैं
और आगे बढ़ेंगे वो
कुछ तुम भी पीछे
मुड़ो न…………
क्षमायाचक है मानव प्राकृति के आगे
अपने बेकाबू कदम अब
बस!!!!!!!!
रोक लो न…………
Only Hindi or English
तुम कहाँ जा रहे हो, पूछा अपनी माँ के पार्थिव शरीर से मैंने
मुझे छोड़ कर, मुँह मोड़ कर
तब वो ममता की मूर्ति बोली, अरे पगली
तू तो मेरा अहसास है, तू सदा मेरे पास है
मैंने तुझे सपने दिए, उड़ना सिखाया
अब इनमें भर रंग, दे अपने ननहें मुनहों को भी पंख
फिर हम मिलेंगे, कभी न बिछड़ने के लिए
ले चलूँगी तब तुझे हमेशा के लिए…
रचनात्मक लेखन…
मंदिर मस्जिद ढ़हा रहे हो, रक्त सभी का बहा रहे हो
माँ, बेटी, पत्नी, कन्या के तन को, नोंच नोंच तुम खा रहे हो
अपने हर रिश्ते की बगिया को, अपने हाथों जला रहे हो
ए इंसां थोड़ा रुको और सोचो…
तुम कहाँ जा रहे हो.
बीना किसी काम के
नकाब या मास्क के
घर से बाहर
तृम कहा जा रहे हो
बाहर कोरोना का
परकोप फैला हुआ है
तूम अपना और अपनो
का ख्याल रखो
दूरी बनाए रखो
एक गलती से बिमारी
फैल सकती है
औरों को तकलीफ हो
सकती है
जान जा सकती है
Banda ae khuda ae khidmatgar
तम कहाँ जा रहे हो – डॉ समता जैन
इस रफ्तार भरी जिदंगी को थमने में वक़्त लगा मगर।
यकिन मानो बिखरे हुए तिनको को समेटने का साहस दिया,
पुछा हमने खुद से इतने वर्षो में क्या खोया, क्या पाया
यहाँ तक लाई कौनसी चाह तुम्हारी, चली तुम कौनसी डगर।।
पुछो खुद से निकले थे कहाँ के लिए, अभी तुम जा रहे हो कहाँ ।
चलो फिर से चले कुछ कदम पीछे, बदल दे अपनी मंजिले और राह।।
बीना किसी काम के
नकाब या मास्क के
घर से बाहर
तृम कहा जा रहे हो
बाहर कोरोना का
परकोप फैला हुआ है
तूम अपना और अपनो
का ख्याल रखो
दूरी बनाए रखो
एक गलती से बिमारी
फैल सकती है
औरों को तकलीफ
हो सकती है
जान जा सकती है
Banda ae khuda ae khidmatgar
ऐ जिंदगी
एक अरसा हो गया तुम्हे देखे हुए,
कहां जा रही हो ज़िन्दगी,
एक बार मुझे गलेलगा ले
उलझती ही जा रही हूँ
कभी तो सुलझा दे
थक गयी हूँ कभी
अपनेपन का एहसाँस दे
माना के तबाही बहोत हो चुकी,
लेकिन जो ख़्वाब अधूरे है मेरे,
उनको पूरा करा दे , ऐ जिंदगी
Title_ Pareshaan aaina
Kisi ke saamne na rota tha
Koi pareshaan na ho uski vajah se
vo to bas yhi chahata tha
Ro bhi de agar to kya farak padta tha
Un aankhon se bhate jajbaat pr
Auro ke liye mahaj ek aansu tha
Mene dekha aaine m use
Wo saskhsh kuch pareshaan sa tha
Dear mam, this poem was posted after the last date and cannot be included in the competition. There will be another chance to take part in the coming month, keep following us for the next update #Yourvoice 3
Dear Mam, this poem was posted after the last date and cannot be included in the competition. There will be another chance to take part in the coming month, keep following us for the next update #Yourvoice 3
What is the result?
Rupal pl wait today before 4pm the result will be announced
What’s this result sir mam
Participants #Yourvoice. We are trying our best to give you results fast. We have decided the first 2 participants but are stuck on which entry should be third. We should be able to resolve in half an hour. Thank you for your patience.
Mother Nature
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I am a passerby
Without destination
But hesitation
To go where and why
Life is a voyage
Sailing like boat
With embracing thought
To be an achiver
Finding goal very near
Don’t ask me where I am going
I am just sowing
Hope for future
To nurture mother nature.
Word-49
One poem is of another topic and the first one exceeds the word limit. How is it judged ? I could also have written a long poem but limiting all in 50 words was the criteria.
All the best to the winners.
Rupal as per Zorba Books shortlisting panel, all 3 poems were connected to the topic and the word limit was not too off the mark, 3 person’s opinions converged on the final 3 poems. We realize there may be differing opinions of participants and the judges
Shampa, the enteries are closed for now. You can post this poem on this link: https://www.zorbabooks.com/submit-spotlight/